क्यों मन में रखते हैं ये ईष्या द्वेष,
लोग जब भी यूँ व्यवहार करते हैं।
प्रतिद्वंद्वी समझर फिर जीवन में,
एक दूजे पे हरपल आघात करते हैं।
ईष्या द्वेष के बोकर बीज मन में यूं,
स्वयं अवनति की फसल सींचते हैं।
जीवन सहज सरल रखें हम अपना,
बेवजह ही क्यों कठिन राह चुनते हैं।
दूसरे के गुणों को भी सराहें हम तो,
क्यों दिलों में बेवजह जहर घोलते हैं।
प्रेम सौहार्द की हम उगाएं अब फसलें
क्यों वैमनस्य की हम धरा सींचते हैं।
ईश्वर प्रत्त ही मिले हमें ये गुण - अवगुण,
सामाजिक समरसता की बात करते हैं।
© उषा शर्मा ✍️
Babita patel
29-Jun-2023 03:24 PM
nice
Reply